माँ रुकती नही थी माँ थकती नही थी कर्म की कड़ाई में सफलता के तेल से ममता की बना देती थी ऐसी भाजी जो भी खाता दंग रह जाता हर ताले की माँ थी चाबी।। जीना आता था उसे भरपूर जीवन माँ ने जीया पूरी किताब भी पड़ जाए छोटी माँ है सतत जलते रहने वाला दीया।। उस दीये की रोशनी से माँ सब रोशन कर देती थी। वो कहीं गयी नहीं हम सब के भीतर बड़े प्रेम से आज भी विराजे। माँ ईश्वर का ही पर्याय होती है दूजा माँ से ही घर आंगन हर द्वार है चहके।। जाने कितने झगड़ों पर माँ ने समझौते का तिलक लगाया होगा। जाने कितने रिश्तों के तारों की उड़दन को ममता का पैबन्द लगाया होगा।। कुछ नही कहती थी चुप ही रहती थी मेरी मां, मेरी माँ।।