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भाव

मां एक ऐसी किताब(( मां पर बेहतरीन कविता स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सदा ममता की जो धुन निकाले, मां होती है ऐसा साज एक बात आती है समझ में, हम कंठ तो मां आवाज ऐसी किताब होती है मां प्रेम से ओत प्रोत हर अल्फाज हमे इस जग में लाने वाली हमारे पंखों को देती है परवाज हर ख्वाब बने हकीकत हमारा यही चाहे पल पल मां का कल और मां का आज शिक्षा है मां संस्कार है मां मां ही सभ्यता मां ही संस्कृति मां ही तहजीब,मां ही रीति मां ही रिवाज

कई बार

क्या लिखूं

साथ नहीं देते अल्फाज

साथ नहीं देते अल्फाज

अल्फाज

अल्फाज

ज़िन्दगी की किताब

ज़िन्दगी की किताब के,कुछ इतने मधुर होते हैं अल्फाज। झंकृत हो जाते हैं तार मन के,प्रेम का  बजने लगता है साज।। जिस्म रूह हो जाते हैं एकाकार, अहसास खुद ही बोलने लगते हैं  बिन आवाज़।।           स्नेह प्रेमचंद

मैं रहूं न रहूं by sneh premchand

मैं रहूं न रहूं