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हवाले। thought by snehpremchand

अल्फ़ाज़ों की मिट्टी से, भावों के पानी से, जब मैंने कविता के भवन के लिए,  किया अहसासों को अभिव्यक्ति के हवाले, सृजन ले चुका था जन्म सहजता से, जैसे गइयाँ चराते हैं कई ग्वाले।।