तेरा मंगल,मेरा मंगल, सब का मंगल होय ये। आधरों पर मुस्कान खिले, कोई नयन सजल न होय रे।। मिले न बेशक भोग रे छप्पन, दाल रोटी लिए न कोई रोए रे ।। तन पर सबके कपड़े होवें, सिर पर छत भी होए रे।। शिक्षा की अलख जले घर घर में, ऐसा सब कुछ होय रे।। सांझे सुख दुख, सांझा चूल्हा, सांझी धूप छांव होय रे।। स्नेह प्रेमचंद