हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक, जो दिल में हमें बसाते हैं। कोई और नहीं वे प्यारे बंधु, मात-पिता कहलाते हैं।। ताउम्र बने रहते हैं वे हमारा आधार कार्ड और एटीएम कार्ड, हम उम्र के दूसरे पड़ाव में उनका आधार और एटीएम बनने से क्यों कतराते हैं?? बनते हैं जब हम खुद मात-पिता, तब यह दोहरे आयाम समझ में आते हैं।। स्नेह प्रेमचंद