ज़रा सोचिए,,,,,,वो जो आप के शुभचिंतक हैं, सही बात पर आप की आलोचना करते है, उनसे नाराज़ होना गलत है,सही समय पर सही बात कहना और करना गलत नही है,आप की खामोशी भी आप की नाराजगी ज़ाहिर करती है,रिश्तों और दोस्ती को अलग रखना चाहिए,एक को अधिक तवज्जो देकर दूसरे को उपेक्षित करना गलत है,जो अपने होते है,वो दिल से कभी दूर नही होते