रोना भी वहाँ चाहिए जहाँ चुप कराने वाला हो। रूठना भी वहाँ चाहिए जहाँ मनाने वाला हो। कुछ कहना भी वहाँ चाहिए जहाँ सुनने वाला सही हो। जाना भी वहाँ चाहिए जहाँ कद्र करने वाला हो। समझाना भी उसे चाहिए जो समझने वाला हो। दस्तक भी उसी दरवाजे पर चाहिए,जहा खोलने वाला हो। इजहार ए मोहब्बत भी वहीं करनी चाहिए जहां कबूल ए मोहब्बत की गुंजाइश हो।। यही दस्तूर ए जहान है, मानो चाहे न मानो।। स्नेह प्रेमचंद