**मिले मित्र जब भी मित्र से, क्यों न दे उसे पौधे का उपहार?? प्रेम संबंधों पर प्रगाढ़ता की मोहर है ये पौधे, जान ले सत्य सारा संसार** मित्र के इत्र से महक जाता है चरित्र सारे का सारा। पौधे से पनपते रहते हैं मित्र लम्हा लम्हा, मित्र से,वजूद ही हो जाता है न्यारा।। विचारों की प्रखरता के लिए उदबोधन ज़रूरी है। स्बंधों की मधुरता के लिए संबोधन ज़रूरी है।। मित्र की मित्रता के लिए मैत्री भाव ज़रूरी है।। यही मैत्री भाव आचार और व्यवहार में निखार लाता है, जीवन को साधारण से अति खास बनाता है।। रिश्ते हम चुन नहीं पाते परंतु मित्र हम चुनते हैं और ये चयन तब होता है जब हमारी मन की तरंगें एक दूजे से मिलती हैं।। वृक्ष हमारे सच्चे मित्र हैं अपने फल,फूल,छाया,आक्सीजन,लकड़ी और अनेक औषधीय गुणों से भरपूर वृक्ष कदम कदम पर हमारे सहायक हैं।इनकी छांव तले जीवन के अग्निपथ की तपिश नहीं लगती।। स्नेह प्रेमचंद