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और अधिक मुझे नहीं चाहिए था((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

और अधिक मुझे नहीं चाहिए था मां रूप में जो मां मिली मुझे जन्नत का धरा पर ही हो गया था अहसास हर्फ हूं मैं तो किताब थी मां जुगनू हूं मैं तो आफताब थी मां मां थी जैसे किसी पहुपन में सुवास मां से प्यारा कोई भी तो नहीं,मां जीवन का सबसे मधुर अहसास मांग लूं मैं मन्नत फिर वही मां मिले वही जहां मिले मुझे वही आसमा मिले मां से अधिक भला और होता है कौन खास जग में भले ही ना हो मां, पर जेहन में सदा होती है पास 47 बरस का साथ रहा मां संग एक पूर्णता का सदा हुआ आभास आज लगी बैठ जब ये सोचने, लगा  और अधिक मुझे नहीं चाहिए था मां जाई रूप में मिली मुझे प्यारी अंजु लोग कहते थे उसे अंजु कुमार मां की ही सच्ची परछाई, मां सा स्नेह,मां सा ही चित में करुणा का पावन संचार मां की सबसे छोटी,सबसे लाडली जुड़े थे जिस से बहुत गहरे से दिल के तार प्यारी सूरत,प्यारी सीरत और प्यारा सा मधुर व्यवहार शब्दों के बस की बात नहीं जो बता सकूं कैसी थी वो कैसा था उसका प्यार 45 बरस का साथ रहा मां जाई संग रोयां रोयां है उसका कर्जदार जब भाव प्रबल हो जाते हैं  शब्द अर्थ हीन हो जाते हैं एक मौन मुखर हो जाता है...