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अधर्म और अनीति(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुविचार,,,,,,यदि हमारे सम्बंधी ,मित्र अधर्म और अनीति की राह पर चल पडें,सम झाने पर भी न समझे,अपनी गलती का अहसास न करें,पापाचार जारी रखे,तो उनका त्याग कर देना ही सही है,अधर्म और अनीति पर चलने वाले रावण को जब विभीषण समझाने का प्रयास करता है, तो रावण उसको लंका से निकाल देता है,इस समय विभिषणधर्म  और सत्य की राह पर चलने वाले राम की शरण में चला जाता है भले ही राम उसके भाई का शत्रु होता है विभीषण अपने उस सगे भाई को त्याग कर रघु नंदन राम की शरण आ जाता है,कांटा पाँव में चुभे,तो निकलना ही सही है,आप को क्या  लगता है?