भावना जब पहनती है लहंगा प्रेम का और उड़ती है चुनर विश्वास की तब वह आस्था बन जाती है आस्था जब करती है घुघट विनम्रता का और गहन अनुभूति का तब वह श्रद्धा बन जाती है श्रद्धा जब बढ़ती है निर्बाध गति से तब सीधा ईश्वर के दर पर जाती है करुणा की जब चलती है आंधी तब स्वार्थ का चुनर खो जाता है वसुधैव कुटुंबकम की भावना हो जाती प्रबल है सब का दुख एक दूजे का हो जाता है यही सिखाया है भक्ति ने ईश्वर शरण में इंसान सच्चा सुख पाता है।।