Skip to main content

Posts

Showing posts with the label उजाला और अंधेरा

उजाला और अँधेरा

किसी मोड़ पर मिले जब दोनों,करने लगे कुछ ऐसी बात, सुनकर खड़े हो गए रोंगटे,जाना क्या है दिन और क्या है रात।। तुम कहाँ रहते हो उजाला,आज मुझे अपने सारे किस्से बताओ, चमकते हो सूरज के तेज से तुम, अपनी चमक का रहस्य बताओ।। हँस कर उजाला कुछ बोला ऐसे,सुन अंधेरा हो गया शर्मसार, लगा बैठ फिर वो सोचने,क्यों जीता उजाला,गया क्योंकर वो हार।। सुन मित्र,मैं रहता हूँ वहाँ, जिस घर में बेटियों को मिलता है मान, और वहाँ पर भी बसेरा है मेरा,जहाँ बहु बेटी होती एक समान।  वहाँ पर भी हूँ मैं, जहाँ श्रद्धा का आलोक,तर्क पर पड़ता है भारी, वहाँ हूँ मैं, जहाँ सौहार्द की सुलगती रहती है चिंगारी।। वहाँ हूँ मैं, जहाँ करुणा की गंगा सतत परवाह से बहती है, वहाँ हूँ मैं जहाँ प्रेम की ज्योति,प्रेम से रहने के लिए सबको कहती है।। वहाँ भी हूँ मैं जहाँ स्वार्थ नहीं परमार्थ का ही होता है डेरा, वहाँ भी हूँ मैं जहाँ एकता का सदा ही होता आया है सवेरा।। वहाँ भी होंगे दर्शन मेरे,जहाँ कन्याओं को देवी माना जाता है, लुटती नहीं, जहाँ पूजी जाती हैं कन्याएं,ऐसे में मुझे रहना आता है।। जहाँ श्रद्धा है,जहाँ आस्था है,समझो मेरा वहीं है बस...