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उसकी छाया में चल कर(( विचार सुमन प्रेमचंद द्वारा))

उसकी छाया में चलकर,  उसका ही साया बनना था खुशियों की खातिर उसकी पीड़ाओं से भी लड़ना था कैसे न हो गर्व मुझे  तेरी बहन होने पर जो मुझे जुगनू की तरह रोशन करती, वो बस मेरी बहना थी चारों ओर  देख लिया मैने, मां जाई तूं सच्चा गहना थी तेरे बिना मैं क्या हूँ केवल शून्य से बढ़कर, तेरे साहस में मैं रही , अनंत से बढ़कर तुम से ही मेरे भीतर साकारात्मक ऊर्जाओं का संचार हुआ, प्रेरणास्त्रोत रही आजीवन तूं मा जाई, हर मोड़ पर तुझ से प्यार हुआ जिंदगी के रंगमंच से यूं हौले से चले जाना एक डिप्लोमेट की तरह मुझे स्वीकार कतई ना मां  जाई हुआ  तुम ही मेरे विचारों की जननी हो मां जाई कौन सी ऐसी भोर सांझ है जब तुम ना हो मुझे याद आई जब जिंदगी का परिचय हो रहा था अनुभूतियों से, तब से प्यारा साथ मिला था तेरा संज्ञा,सर्वनाम,विशेषणों का बोध जब हो रहा था मुझे,बन कर आई तूं जीवन में उजला सा सवेरा जीवन पथ पर संग संग चली तेरे एक ही परिवेश एक सी परवरिश एक ही प्रोफेशन पर बढ़ाई राहें, बनी उलियारा हर लिए तमस घनेरा क्या भूलूं क्या याद करूं मैं????? मेरे वजूद से भी मुझे तेरे वजूद की महक आती है मधु...