कुंती द्वारा कर्ण का त्याग न्यायोचित नही था,जिस प्रेम और सम्मान का कर्ण अधिकारी था,वो उसे नही मिला,उसे क्या मिला?सूतपुत्र होने का दंश,उच्च कुल में जन्म लेने के बाद भी जात पात का नासूर उसे खा गया,एकलव्य अर्जुन के सामान धनुर्धर था,परंतु द्रोण ने उसके दाहिने हाथ का अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में मांग लिया,क्या यह न्यायोचित था?नही,अगर कर्ण का त्याग कुंती ने न किया होता,तो इतिहास की धारा ही बदल गयी होती,भरी सभा में पांचाली का चीर हरण हुआ,पूरी सभा मौन रही,क्या यह सही था?पावन जनकनंदिनी की अग्निपरीक्षा ली गयी,गर्भावस्था में उसको जंगल भेज दिया गया,क्या यह सही था?इतिहास में जाने कितने उदहारण हैं ,जब गलत हुआ ,और सब खामोश रहे,फिर ये तो कलयुग है,अब कोन बोलेगा?