स्नेह में वह ताकत है ऊंच नीच के भेद भुलाने की वरना क्या जररूत थी श्री राम को बेर झूठे शबरी के खाने की मेहनत में वह ताकत है संकल्प को सिद्धि से मिलाने से वरना क्या जरूरत थी राम को सागर पर पुल बनाने की प्रेम में वह ताकत है रूह को छू जाने की वरना क्या जरूरत थी कान्हा को राधा रंग में रंग जाने की भगति में वह ताकत है अराध्य को अपना बनाने की वरना क्या जरूरत थी बजरंगी को सीना अपना चीर राम मूर्ति दिखाने की