**धरा सा धीरज उड़ान गगन सी मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान** *एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान* न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।। वो कभी नही रुकती थी, वो कभी नही थकती थी, किस माटी से खुद ने उसका किया था निर्माण? उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!! धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी, *मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान* धूप धूप सी जिंदगी में, मां छांव छांव सी, *मां से खिल जाते हैं गुलिस्तान* *कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का,हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया* *कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का, सब का रोम रोम हर्षाया* हारी नहीं कभी कर्म से, मेहनत को अपना शस्त्र बनाया *कर्म आनंद है* ऐसे संस्कारों का शिक्षा भाल पर तिलक लगाया* जिंदगी के इस चमन की, *मां सबसे प्यारी बागबान* *हर कली, बूटे,पत्ते का रखती अपनी क्षमता से पूरा ध्यान बिन फल के वृक्ष के लिए भी खाद,पानी,धूप, हवा का करती प्रावधान* *बहुत छोटा शब्द है मां को कहना केवल महान मां की गोद में तो हुए आनंदित खुद राघव और माधव भगवान* *मातृऋण से कभी उऋ...