आज गोवर्धन पूजा कर रहे फिर से सब गिरधारी। जन रक्षा हेतु एक उंगली पर गिरी उठा गए थे मुरारी।। भय आक्रांत थे कभी किसी काल में जो भी नर नारी। सुधि ली मोहन,आपने उनकी,निर्भय हो गई कायनात सारी।। "गो रक्षा" और "पर्यावरण रक्षा"का दिया था उस युग में भी संदेश। आज भी उतना ही प्रासंगिक है ये,देश है चाहे हो फिर विदेश।। संवारे धरा को,हो स्वच्छ पर्यावरण हमारा, हों महफूज़ वाली पीढ़ियां हमारी। हर पर्व की कोख में है सन्देश कोई न कोई, हों अपनी भारतीय संस्कृति के हम आभारी।। गोवर्धन का अर्थ है गायों का वर्धन,संवर्धन और अच्छे से पालन पोषण करना। न खाएं वे कूड़ा करकट और थैलियां, है ये जिम्मेदारी हमारी,करे कर्मों का फल पड़ता है भुगतना।। यही भाव है इस पर्व का ,इसी भाव से लबरेज हो सोच हमारी। आज गोवर्धन पूजा फिर से सब कर रहे गिरधारी।। आज गोवर्धन पूजा कर रहे फिर से सब गिरधारी। एक बार फिर खतरे में है मानवता सारी।। एक अनजान सा वायरस फैल रहा है कन कन्न में, ज़िन्दगी मौत के सम्मुख है हारी।। फिर निर्भय कर दो हम सब को,ओ बांके बिहारी।। बुझे न चिराग असमय ही किसी आंगन के, है आपकी ...