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पूरी धरा पर thought by snehpremchand

पूरी धरा पर एक वतन आशा उजियारे से महक रहा था। ओढ़ी थी माँ भारती ने स्वर्णिम चुनरिया कोई ख्वाब  हकीकत की खुशबू से महक रहा था।