एक धरा है एक गगन है एक ही तो है ये संसार। एक ही वृक्ष के हैं हम विविध पत्ते,पुष्प और कलियाँ, एक ही ओम एक ओंकार।। खुद पीकर गरल बचाया सृष्टि को नीलकण्ठ भोले बाबा तारनहार।। यही तरबियत है आज के दिन की गरल पीना सीखें फैलाएं नहीं इसी भाव का तिलक करें संस्कार।।