एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ और हरी भरी शाखाएँ।। विविध्ता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे, पर मन की एकता की मिलती हैं राहें।। पत्थर भी तैर सकते हैं पानी मे, गर शिद्दत से सब मिल कर चाहें। एक ही धरा है एक ही गगन है, फैला दो एक दूजे के लिए प्रेम भरी बाहें।। अम्न चैन से बढ़ कर कुछ नही, कुछ भी तो नही, खुशियाँ एक दूजे के चेहरों पर लाएँ।। कुछ भी तो साथ नहीं जाना, हो बेहतर, अंतर्मन को सत्य ये बखूबी समझाएँ। प्रेम में ही है वो ताकत जो सबको अपना बना सकता है, ऐसी फिजां में महक सी लाएँ। प्रकृति भी सिखा गयी हमको, हम भी पीढ़ियों को ये सिखाएं।। आ गया समय है देर करें न, पैगाम प्रेम का सर्वत्र ही पहुंचाएं।। खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का अहसास। कोई तो कुटिया में भी खुश है, किसी को महल भी नहीं आते रास।।। इस सत्य को आओ जन जन तक पहुंचाएं।। स्नेह प्रेमचंद