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Poem on Diwali by Sneh premchand(( चलो ना इस बार दिवाली में ))

*चलो ना इस बार दिवाली बिन पटाखों के मनाते हैं* *प्रदूषण रहित हो वतन हमारा, ऐसी मुहिम चलाते हैं* *जो अपव्यय करते हैं आतिशबाजी में, उसी धन से किसी अंधेरी झोंपड़ी में उजियारा लाते हैं* *बाल मजदूरों को किताबें मुहैया करवाते हैं* *प्रकाश दीए का नहीं, अलख ज्ञान की जलाते हैं* *चलो ना इस बार दीपावली बिन पटाखों के मनाते हैं* *गर्द झाड़नी ही है तो दीवारों संग मन की भी झाड़ जाते हैं* *जाले उतारने ही हैं तो उतारते हैं पूर्वाग्रहों,अहंकार,ईर्ष्या द्वेष के,मन को पावन निर्मल बनाते हैं* क्या मिलेगा शोर मचा कर, किन्ही भूखे पेटों की भूख मिटाते हैं स्वच्छ रहे सदा वातावरण हमारा कुछ ऐसी मुहिम चलाते हैं घटे प्रदूषण, बढ़े प्रेम  ऐसा रंग जमाते हैं *महंगी महंगी लाइटें छोड़ कर, निर्धन कुम्हार के घर के दीये  लाते हैं* *मुझे तो दीवाली के यही मायने समझ में आते हैं* चलो ना इस बार दिवाली बिन  पटाखों के मनाते हैं रंगों और पुष्पों की बना रंगोली तोरण बंदनवार सजाते हैं स्नेह,सौहार्द,करुणा,दान,अपनत्व सौहार्द,विनम्रता सातों भावों का इंद्रधनुष सजाते हैं रूठे हुए हैं जो अपने,उन्हें गले लगाते हैं बर्फ सी जम गई है