पाकीज़ा thought by snehpremchand May 14, 2020 कुछ बन्धन इतने पाकीज़ा,इतने गहरे होते हैं,वहाँ अल्फ़ाज़ों की जगह अहसास ले लेते हैं,हम मशरूफ रहते हेंजाने किन किन मसलों में,ये बन्धन कतरा कतरा सागर से बन सुकून ए रूह हमें देते हैं।। स्नेहप्रेमचन्द Read more
वजूद। thought by snehoremchand April 16, 2020 कतरा कतरा मैं पिंघलता रहा, कसूर तुम्हारे वजूद का था।। स्नेहप्रेमचंद Read more