एक कमरा उसका भी हो, है वो भी इसी अंगना की कली प्यारी। यहीं फला फूला था बचपन उसका, अब कैसे मान लिया उसे न्यारी।। नए रिश्तों के नए भंवर में उसके जीवन के अध्याय बदल जाते हैं। बहुत कुछ छिपा दिल के भीतर, लब उसके बेशक मुस्कुराते है।। हर गम हर खुशी में होती है फिर भी पूरी उसकी भागेदारी। बीता समय तो कैसे मान लिया उसे न्यारी।। अम्मा बाबुल के सपनो ने जब ली प्रेमभरी अँगड़ाई थी। तब ही तो लाडो बिटिया इस दुनिया मे आयी थी।। एक ही चमन के कली पुष्प तो, होते हैं सगे बहन भाई। फिर सब कुछ बेटों को सौंप मात पिता ने, क्यों अपनी लाडो कर दी पराई??? हाथ पीले कर उसके, मानो अपनी ज़िम्मेदारी निभाई।। मिले न गर ससुराल भला उसे, हो जाएगी न वो दुखियारी। एक कमरा तो उसका भी बनता है, है मात पिता की वो हितकारी।। कभी न भूले कोई कभी भी, थी वो भी इसी अंगना की कली प्यारी। इतना हक तो उसका भी बनता है, अधिक नहीं तो एक कमरे की हो साझेदारी।। विदाई के साथ लाडो के, क्यों विदा हो जाते हैं सारे अधिकार जब वो सोने नहीं देती जिम्मेदारी फिर जागृत क्यों नहीं रहते अधिकार??? उसे कभी पराया मत कहना, दूर रह कर भी...