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Showing posts with the label कान्हा

गोपाल

कशिश

एक अद्भुत सी कशिश लिए हुए है कान्हा का मोहक किरदार। कभी ग्वाला,कभी वो रक्षक,कभी सारथी,कभी द्वारकाधीश का श्रृंगार। कभी बने सहायक पंचाली के,किया चीर बढ़ा समर्पण स्वीकार। कभी मित्र सुदामा के बने बड़े प्रेम से,किया मन से मित्र का स्वागत सत्कार। कभी खाई भाजी विदुर के घर मे,जग से हटाया पापाचार। कभी दिया ज्ञान गीता का अर्जुन को,समझाया जग को कर्म का सार। कभी शांति दूत बने पांडवों के,दिया संदेश विश्व को,होती नही धर्म की हार। साधुओं की रक्षा के लिए,धर्म को हानि न पहुंचे,इसके लिए,नारी की रक्षा के लिए,कान्हा ही तो थे सदाबहार। राधा कान्हा के प्रेम का आज भी ज़र्रे ज़र्रे में कर लो दीदार।

मित्र

मित्र रूप में कान्हा की है संग सुदामा के, बड़ी ही प्यारी ,सबसे न्यारी,अद्भुत कहानी। ऊँच नीच न भेद न जाना अपने सखा को तुरंत पहचाना। कहा द्वारपालों को खोलो किवाड़ था पक्का उनका दोस्ताना।।। आवभगत की ऐसी सुदामा की युग आने वाले भी भूल न पाएंगे। जब भी होगी मित्रता की चर्चा गोविंद सुदामा की कहानी गुनगुनाएंगे।। बिन कहे ही मित्र के हृदय की गोविंद जान गए थे बात।।।। कितना अपनत्व,कितना प्रेम था उस मिलन में भूले भी न भुलाई जाएगी वो मुलाकात। युग आएंगे,युग जाएंगे पर सुदामा कान्हा की दोस्ती भूल न पाएंगे।। प्रेमवचन का तो यही मानना है,आप को क्या लगता है????

प्रकाश पुंज thought by sneh premchand

गहन घटाटोप में प्रभापुंज से चमके थे कान्हा, किया पुनरोदय भारत का,भटके हुओं को राह दिखाई। जब जब हुई थी हानि धर्म की, कारागार में उनके जन्म की  शुभ घड़ी आयी।।          स्नेह प्रेमचंद

युग by sneh premchand

एक व्यक्तित्व ही नहीं,  एक समूचा युग थे कृष्ण, एक मनोविश्लेषक,एकमनोवैज्ञानिक, धर्मज्ञ और राजनेता। तीन स्पष्ट उद्देश्य थे उनके,  सन्त लोगों का भला,बुराइयों का नाश, धर्म की स्थापना , सच मायनो में थे वे एक विजेता।।        स्नेह प्रेमचन्द

दूर चाहे पास

दूर रहो चाहे पास रहो हर पल कान्हा आपका दिल मे अहसास है। तोरी बाँसुरिया की मधुर तान जो, वो मेरे दिल के बहुत पास है। और नही सुनता मुझे कुछ भी जग में ये मोहक तान  सांवरिया, मोरे जीवन की आस है।।