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मित्र रूप में

मित्र रूप में कान्हा की है संग सुदामा के, बड़ी ही प्यारी ,सबसे न्यारी,अद्भुत कहानी। ऊँच नीच न भेद न जाना अपने सखा को तुरंत पहचाना। कहा द्वारपालों को खोलो किवाड़ था पक्का उनका दोस्ताना।।। आवभगत की ऐसी सुदामा की युग आने वाले भी भूल न पाएंगे। जब भी होगी मित्रता की चर्चा गोविंद सुदामा की कहानी गुनगुनाएंगे।। बिन कहे ही मित्र के हृदय की गोविंद जान गए थे बात।।।। कितना अपनत्व,कितना प्रेम था उस मिलन में भूले भी न भुलाई जाएगी वो मुलाकात। युग आएंगे,युग जाएंगे पर सुदामा कान्हा की दोस्ती भूल न पाएंगे।। प्रेमवचन का तो यही मानना है,आप को क्या लगता है????

बांसुरी

अधरों पर कान्हा की बांसुरी देख कर, गोपी को ईर्ष्या हो आयी।।।।।।।।। ये कैसी सौत है मेरी बाँसुरिया, प्रीत तो कान्हा से मैंने लगाई।।।।। माखनचोर नही वो तो, निश्चित ही हैं चितचोर। चुराया है जाने कितनों का दिल उसने ऐसे हैं मेरे मोहन,नन्दकिशोर। सुन मोहन की मोहक बांसुरी राधा नंगे पावँ दौड़ी चली आती थी। ज़र्रे ज़र्रे में राधा को मोहन की मदहोश करने वाली बांसुरी बेसुध बनाती थी। कौन  शहर से आया ये जादूगर ब्रज की हर गोपी गुनगुनाती थी।।।

मोहक तान

तान