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शब्दों में नहीं वह ताकत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कान्हा का किरदार

एक अद्भुत सी कशिश लिए हुए है कान्हा का मोहक किरदार। कभी ग्वाला,कभी वो रक्षक,कभी सारथी,कभी द्वारकाधीश का श्रृंगार। कभी बने सहायक पंचाली के,किया चीर बढ़ा समर्पण स्वीकार। कभी मित्र सुदामा के बने बड़े प्रेम से,किया मन से मित्र का स्वागत सत्कार। कभी खाई भाजी विदुर के घर मे,जग से हटाया पापाचार। कभी दिया ज्ञान गीता का अर्जुन को,समझाया जग को कर्म का सार। कभी शांति दूत बने पांडवों के,दिया संदेश विश्व को,होती नही धर्म की हार। साधुओं की रक्षा के लिए,धर्म को हानि न पहुंचे,इसके लिए,नारी की रक्षा के लिए,कान्हा ही तो थे सदाबहार। राधा कान्हा के प्रेम का आज भी ज़र्रे ज़र्रे में कर लो दीदार।

पाठक मंच(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तुलसीदास या श्रवण कुमार

**तुलसीदास या श्रवण कुमार*** दोनो ही माइथोलॉजी के सशक्त किरदार एक पत्नीभगत एक मात पिता का लाल सबका अपना अपना नज़रिया,पर हैं दोनो ही कमाल विकल्प दिए हैं खुदा ने हमको ये हमपर है हम क्या चयन करते हैं कैसे भूल सकते हैं  मा बाप को जो औलाद के लिए ही जीते और मरते हैं मा बाप तो जन्म से ही साथ हमारे होते हैं ज़िन्दगी का परिचय करवाते हैं अनुभूतियों से,संग हँसते और रोते हैं जीवनसंगिनी तो एक उम्र के बाद हमारे जीवन मे आती है फ़र्ज़ और कर्तव्य हैं उसके लिए भी, पर अक्सर मा बाप को वो पृष्टभूमि में ले आती है मुख्य को गौण बनाने में सार्थक भूमिका निभाती है ध्यान से सोचो, मातृ औऱ पितृऋण से हम कभी उऋण नही हो पाएंगे नही कर सकते कभी भी हम उतना, युग आएंगे,युग जाएंगे

काल के कपाल पर

काल के कपाल पर चिन्हित हो जाती हैं कुछ खास घटनाएं और कुछ खास किरदार तेरा नाम आता है शीर्ष पर मां जाई!जाने सत्य सारा संसार कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का, वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार व्यक्तित्व और कृतित्व तेरा था कुछ अलग ही, एक शब्द में कहना हो तो कहूंगी मैं दमदार

मैं मांडवी रामायण की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मैं मांडवी रामायण का  एक खामोश सा दर्द भरा किरदार* *मेरी पीर ना जाने कोय जग में, मुझे छोड़ गया वन में भरतार* *मिला तो वनवास श्री राम को था पर भोगा मैने भी इसे, हुआ जिया मेरा तार तार*  * भाई संग धारे वलकल  मेरे साजन ने भी, ऐसा भाई भाई का विलक्षण प्यार* *भाई  ने भाई को मनाने के लिए परिवार सहित किया वन बिहार* 11 स्वर और 33 व्यंजन नहीं बता सकते, जाने कितनी की उन्होंने भाई से मनुहार।। लौट चलो भाई घर को, पूरी अयोध्या कर रही इंतजार।। *जनमत और नीति* में से नीति का चयन किया राघव ने, पिता वचन निभाने का निभाया किरदार।। नहीं माने जब रघुराई, तब खड़ाऊ सिर पर साजन में लिए धार।। खड़ाऊ सिहांसन पर रख कर राज किया बरस 14, ऐसे प्रिय भरत धरा पर सोए बिन राम के, मेरे चित में सम्मान है उनका बेशुमार।। पर मेरे मन के किसी  कोने में एक  *रडक* सी करती रहती है बसेरा भाई प्रेम तो निभा गए साजन, पर दांपत्य जीवन का अस्त कर गए  सवेरा।।। *दीदी जानकी ने तो पति संग ही किया था वन गमन* *मैं तो महलों में भी रही दीन दीन सी, आता है ख्याल जेहन में, जब भी करती हूं मनन* मेरा भी वनवास थ...

कर्मभूमि के रंगमंच पर(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

**कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया बखूबी आपने अपना किरदार** शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका, हो जिंदगी खुशियों से गुलजार।। **हौले हौले शनै शनै**  दिन ये एक दिन आ ही जाता है। कार्य क्षेत्र से हो सेवा निवृत, व्यक्ति घर को आता है।। **ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक**  इंसा पल पल बदलता जाता है।। जाने कितने ही *अनुभव तिलक* जिंदगी भाल पर लगाता है।। कभी खट्टे जब मीठे अनुभव, हर अहसास से गुजरता जाता है।। जीवन की इस आपाधापी में पता ही नहीं चलता,  कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का, व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है।। **हौले हौले शनै शनै** दिन ये एक दिन आ ही जाता है।। **आप खूब चले,खूब किए कर्म*** सकारात्मक नजरिए से खटखटाए  सदा जिंदगी के द्वार।। सबसे ताल मेल बिठाया, सबको ले कर साथ चले आप हर बार।।  लबों पर सजी रही सदा मुस्कान आपके,अपनेपन के हुए आप में सदा दीदार।। *कर्मभूमि के रंग मंच पर* निभाया बखूबी आपने अपना किरदार।। शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका, दे रहा दुआएं पूरा हिसार परिवार।। **आज घर की ओर चली घर की बागबान** अब वक्त की न होगी कोई पाबंदी,  समय की हो जाओगी धन...

अच्छी सोच वाले

शो मस्ट गो ऑन

तुलसीदास या श्रवण कुमार

**तुलसीदास या श्रवण कुमार** दोनो ही माइथोलॉजी के सशक्त किरदार एक पत्नीभगत एक मात पिता का लाल सबका अपना अपना नज़रिया,पर हैं दोनो ही कमाल विकल्प दिए हैं खुदा ने हमको ये हम पर है हम क्या चयन करते हैं कैसे भूल सकते हैं  मा बाप को जो औलाद के लिए ही जीते और मरते हैं। मा बाप तो जन्म से ही साथ हमारे होते हैं, ज़िन्दगी का परिचय करवाते हैं अनुभूतियों से,संग हँसते और रोते हैं। जीवनसंगिनी तो एक उम्र के बाद हमारे जीवन मे आती है। फ़र्ज़ ओर कर्तव्य हैं उसके लिए भी, पर अक्सर मा बाप को वो पृष्टभूमि में ले आती है। मुख्य को गौण बनाने में सार्थक भूमिका निभाती है।। ध्यान से सोचो, मातृ औऱ पितृऋण से हम कभी उऋण नही हो पाएंगे नही कर सकते कभी भी हम उतना, युग आएंगे,युग जाएंगे।।

रंगमंच है ज़िंदगी

ओ अदाकारा

बखूबी निभा गई मां जाई तूं अपना हर एक किरदार प्रेम भी तूं,प्रीत भी तूं,किया प्रेम सबसे बेशुमार।।

जिंदगी एक रंगमंच((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जिंदगी एक रंगमंच

पहले बेटी फिर मां रूप

प्रोत्साहन((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा,))

दो पल की है जिंदगानी

ओ चित्रकार((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

प्रेम की गीता

कहानी