सब स्वस्थ हों,सब निर्भय हों, अबऐसा कुछ करदे मेरे दाता। ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इंसान घबरा रहा, ऐसे में समझ नही कुछ आता।। सब स्वस्थ हों,सब निर्भय हों, अब ऐसा कुछ करदे मेरे दाता। प्रीत प्रेम के रंग से रंग दे रूह मानव की,भाग्य निर्माता। भेज कोई ऐसा रँगरेजा, हो ऐसा रँगना जिसे आता।। सब निर्भय हों,सब स्वस्थ हों अब ऐसा कुछ करदे मेरे दाता।। घृणा हनन हो,लोभ शमन हो ईर्ष्या दमन हो,सदभाव नमन हो ऐसा भाव हो सबको सुहाता। आस विश्वास की टूटे न डोर, हो प्रेम प्रीत का मीठा सा शोर, निराशा के इस घने तमस में, आए आशा की उजली सी भोर।। संशित और आशंकित हिवड़ा, कभी कुछ बढ़िया नही कर पाता। सब सहज हों,सब निर्भय हों, ऐसा कुछ कर दे मेरे दाता।। बड़ा कमज़ोर है आदमी, अभी लाखों हैं उसमें कमी, कमियों को गुणों में बदलना, एक तुझे ही तो है आता।। सब निर्भय हों,सब स्वस्थ हों, ऐसा कुछ करदे मेरे दाता। थम सी गयी है ये ज़िन्दगी, उल्लास ऊर्जा से रंग दे मेरे दाता।। दुख हर ले और सुख करदे, है तूँ ही तो सबका भाग्य विधाता।। आनन्द सा भर दे, स्पंदित चेतना करदे, मानव मन है अति अकुलाता।। एक भरोसा ही तो तेरा, जेहन में सारी खुशियाँ लाता। ...