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यादगार((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कुछ खास लम्हे सच में, बन जाते हैं यादगार। जब जिंदगी जिजीविषा का  करती है सोलह श्रृंगार।। जिंदगी हो जाती है खूबसूरत, जब मिल जाए अपनों का साथ। बहुत दूर तक संग चले हम, लेकर हाथों में एक दूजे का हाथ।। साथ तेरा था मधुरम मधुरम, निभाया तूने बखूबी,  अपना हर किरदार। कुछ खास लम्हे सच में  बन जाते हैं यादगार।। जब जिंदगी जिजीविषा का करती है सोलह श्रृंगार।।। तेरी प्राथमिकताओं की फेरहिस्त में बहुत ऊपर थे लाडो रिश्ते नाते। सबसे बड़ी खूबी थी तेरी, बड़े प्रेम से थे तुझे निभाने आते।। जिस से भी मिलती, उसे लगता तूं है उसकी खास। दर्पण से व्यक्तित्व वाली, दूर जा कर भी तूं है हम सबके पास। जेहन से तो कभी जाएगी नहीं, ऐसा मेरा नहीं, है सबका विश्वास।।  प्रेम,समर्पण,विश्वास रही सदा तेरी जमापूंजी, यही रहा सदा तेरी सोच का आधार। कुछ लम्हे सच में ही बन जाते हैं यादगार।। जुगनू नहीं,आफताब थी तूं, हर्फ नहीं,पूरी किताब थी तूं, संकल्प नहीं सिद्धि थी तूं, सत्कर्मों के लिए बड़ी जिद्दी थी तूं, मेहनत की विरासत तो मां से ही ली थी तूने, सही समय पर समझ लिया, सही कर्मों का सार।  कुछ लम्हे बन जाते हैं सच मे...