वो कैसे सब कुछ कर लेती थी?? थोड़े से उपलब्ध संसाधनो में हमे सब कुछ दे देती थी!!! पर्व,उत्सव,या फिर कोई भी उल्लास' बना देती थी वो कितना खास!!! ज़िन्दगी के भाल पर जिजीविषा का कैसे तिलक लगा देती थी???? कभी नहीं रुकती थी,कभी नहीं थकती थी,कभी कोई विराम नहीं लेती थी।।। वो कैसे सब कुछ कर लेती थी।।। कर्मठता का पर्याय थी,जीवन मे सबसे सच्ची राय थी।। कितने पापड़ बेल कर भी सहजता से मुस्काती थी।। वो कैसे सब कुछ कर जाती थी !!! वक्त में से अपने लिए तूं कभी वक्त निकाल नहीं पाती थी। ये तूं नहीं,तेरे हाथ पर लिपटे सूखे आटे की उतरन बताती थी।। वो कैसे सब कुछ कर जाती थी।।। वो सिर पर मण बोझ लादना, वो गेहूं की अनेकों बाल्टी तोलना, वो कितनी ही भैंसों को करना काम वो भंड्रोल मांजनी,वो कपड़े धोना, वो इंटों के फर्श को लाल लाल चमकाना। वो दीवाली पर भेंसों के गले की पट्टियां बनाना।। वो हम संग कितने ही मेहमानों का भोजन पकाना।। वो कैसे सब कर लेती थी।। गर पी एच डी करनी पड़े उसके बारे में, हर कोई चक्कर मे पड़ जायेगा। डाटा कुछ औऱ कहेगा,परिणाम कुछ और ही आएगा।!! समझ से परे है,मरुधर में हरियाली थी...