*हिंद दी चादर,गुरु तेग बहादुर,* धरा हिंदुस्तान की कैसे भूलेगी आपका उपकार??? निज स्त्रोत में ही लीन हो गया प्रकाश, चली जल्लाद की जब निर्मम तलवार।। 24 नवंबर 1675 की तारीख, कभी भुला नहीं पाएगा इतिहास। धर्म लगा था दांव पर उस दिन, अवरुद्ध कंठ, और धक धक श्वास।। इस्लाम न कबूलने का हौंसला अडिग रहा तो, चली जल्लाद की निर्मम तलवार। हिंद दी चादर,गुरु तेग बहादुर, धरा भारत की कैसे भूलेगी आपका उपकार??? युग आएंगे,युग जाएंगे, चहुं दिशा में रहेगी सदा आपकी जय जयकार।। गुरुद्वारा शीश गंज,चांदनी चौक,दिल्ली का ही तो है वह ऐतिहासिक स्थान। जहां शीश कटा गुरु तेग बहादुर का, दे गए निज प्राणों का बलिदान। आत्मा मिल गई परमात्मा में, नतमस्तक हो गया पूरा संसार। हिंद दी चादर,गुरु तेग बहादुर, धरा भारत की कैसे भूलेगी आपका उपकार???? पूरे हिंदुस्तान का बदल गया था भविष्य, ऐसा मोड़ था, ये इतिहास का। आम का नहीं, सच में जिक्र है ये बहुत ही खास का।। नहीं कबूला इस्लाम,बलिदान दे दिया, सच में ईश्वर का अवतार। हिंद की चादर,गुरु तेग बहादुर, धरा हिंदुस्तान की कैसे भूलेगी आपका उपकार??? हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती, घंटियों की जग...