काश रूह भी पहन लें ऐसा ही कोई लिबास। काम,क्रोध,लोभ,अहंकार का कोई भी वायरस, न छू सके उसके अंतर्मन को, बात ये सच मे खास।। प्रेम का मास्क पहन लें ये दुनिया सारी, एक बार जो पहने,फिर उतरे न कभी ये, हो ऐसी खुदा की खुद की गई तैयारी।। घृणा,हिंसा,ईर्ष्या के हाथ धोएं बार बार हम, मानवता न हो वैश्विक महामारी से हारी।। मोहबत ही एकमात्र रँगरेज है ऐसा जो पूरे विश्व को एक ही रंग में रंग देगा। हारेगी नकारात्मकता,जीतेगी सकारात्मकता, ईश्वर कष्ट निज सन्तान के हर लेगा।। स्नेहप्रेमचंद