पूछन लागी जब मेरी सखियाँ,क्या राखी का तू लायी है????? कैसे कहूँ मै जो लायी हूँ, तुझको सखी री नाही दिखेगा। भाई प्रेम का पुष्प है जो, वो बहना के दिल मे ही खिलेगा।। *उस मां जाए को देख देख कर हो आई हूं मैं धनवान* *उसके अक्स में आता है नजर मुझे तो अपना बागबान* *बेशक अब नहीं लड़ती हूं पहले सी, थोड़ी सी हूं अब मेहमान* *अब बदल गईं है सोच मेरी, प्रेम से है सुंदर ये पूरा जहान * कैसे बताऊँ, भाभी की बतियाँ, अपनेपन की लंबी सी रतियाँ।। कासे कहूँ मैं प्रेम बच्चों का, माँ का अक्स नज़र उनमे आया। बाबुल की सहजता उस आंगन में,आज वो अंकुर वृक्ष बन आया।। कैसे बताऊँ, वो पल बचपन के,लायी हूँ संजो कर ,हिवड़े में अपने *होते हैं पूरे वहाँ, देखे थे जो अपने* *माँ बाबुल का तन तो नही है* *लेकिन उनका मन तो वहीं है* निहारते होंगे जब ऊपर से, दिल से दुआएँ देते होंगे, *उस आँगन की मिट्टी की महक आज भी ख्वाबों में आया करती है* *सौंधी सौंधी सी कितनी प्यारी सी थी अंतःकरण को पूर्णता भाव से भरती है* आज भी याद आता है माहौल वो जब बचपन ने ली थी अंगड़ाई, कितने मज़े से खेला करते थे सब खो खो,पिटठू, छुपम छुपाई।। माँ के खाने की म...