माँ क्या लिखूँ तेरे बारे में, तूने तो मुझे ही लिख डाला। सीमित उपलब्ध संसाधनों में, कैसे ममता से था तूने हमे पाला।। जीवन का अमृत पिला गई हमको, खुद पी गयी कष्टों की हाला। एक बात आती है समझ माँ मुझको, तूँ जीवन की सबसे बेहतर पाठशाला। कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का, माँ तूने हम सब को आकंठ तृप्त कराया। क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं, सबसे शीतल था माँ तेरा साया।। माँ तेरे होने से सतत बजती थी ममता शहनाई है कौन सी ऐसी भोर साँझ, न जब तूँ हो मुझे याद आई।। मेरी पतंग की माँ तूँ ही डोर थी, उड़ने को,तूने अनन्त गगन दे डाला। कभी खींचा भी,कभी ढील भी दी, पर कटने से तूने सदा संभाला।। माँ क्या लिखूं तेरे बारे में, तूने तो मुझे ही लिख डाला।। आज भी मन के एक कोने में तूँ, बड़ी शान से रहती है। वो तेरे होने की अनुभूति ही, मानो सुमन में महक सी रहती है।। सोच सोच होती है हैरानी, ये तूने कैसे सब माँ कर डाला?? हमे तो अमृत पिला गयी, पर खुद पी गयी कष्टों की हाला।। मेरी लेखनी भी माँ तुझको, करती है शत शत प्रणाम। कैसे भाव खेलते शब्दों से, गर कराया न होता तूने अक्षरज्ञान।। मेरी हर रचना समर्पित माँ तुझको, तुझे पाकर...