भा---रतीय जीवन बीमा निगम का दूसरा नाम है सेवा,सुरक्षा और विशवास र---खा है जिसने स्नेह और सौहार्द सभी से,तभी निगम है अति खास ती---र्थ भी कर्म है,धाम भी कर्म है,इसी सोच से हुआ है सतत विकास य---हाँ, वहाँ सर्वत्र पसारे पाँव निगम ने,अपने अस्तित्व का इसे आभास जी--वन के साथ भी,जीवन के बाद भी,निराशा में भी आशा का किया है वास व---नचित न रहे कोई भी उत्पादों से, इसके,यथासंभव किया हर प्रयास न---भ सी छू ली हैं ऊंचाईयां, आता है धरा के भी रहना पास बी---च भंवर में जब कोई चला जाता है, छोड़ कर,होती है निगम से फिर आस मा---हौल बनाया निगम ने ऐसा,जैसे कुसुम में होती है सुवास नि---यमो को नही रखा कभी ताक पर,हर वर्ग को जोड़ कर खुद से,सतत किया जिसने प्रयास ग---रिमा अपनी रखी बनाई,सबको जीवन मे राह दिखाई,दिनकर से तेज का इसमे वास *संकल्प से सिद्धि तक छिपे हैं जाने कितने ही अगणित प्रयास* म---जबूत हौंसला,बुलंद इरादे,जनकल्याण की भावना का न हुआ कभी ह्रास।। स्नेहप्रेमचंद