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फिजां thought by snehpremchand

सदा नहीं रहने वाली खिज़ा,  एक दिन लौटेगी ही फिज़ा, देर है मगर अंधेर नही, है मन मे इतना विश्वास। जीत जाएगी मानवता, हारेगी ये वैश्विक महामारी, धड़कती रहेगी दिल मे धड़कन , चलता रहेगा तन में  श्वाश।। ख़ौफ़ज़दा नहीं होना है, करना है हर संभव प्रयास। जो लड़े हैं वही तो जीते हैं, बस टूटे न मन से कभी आस।। हर धर्म का हर जाति का व्यक्ति, आज कर रहा यही अरदास। हे ईश्वर सम्भाल लेना हमें,  बच्चे तेरे हम हैं अति खास।। विघ्नहर्ता भी तूँ,संकटमोचक भी तूँ  है तूँ जैसे पहुपन में सुवास। साँझी प्रार्थना में होती है शक्ति, हो सबका साथ,सबका विकास ।। सदा नहीं रहनी ये खिज़ा,  एक दिन  लौटेगी ही फिजां, देर है मगर अंधेर नही, है मन मे इतना विश्वास।  क़ज़ा पर नहीं, है भरोसा कर्म पर, है तेरी रहनुमाई की एहतियाज।। स्नेहप्रेमचन्द रहनुमाई -– राह दिखाना एहतियाज---आवश्यकता फिज़ा---बहार खिज़ा-- पतझड़

पतझड़ thought by snehpremchand

तन की कहानी एक बीज से वृक्ष तक के सफर के माध्यम से समझ आती है,जैसे बीज धरा की कोख  से अंकुरित,पल्वित,पुष्पित और एक दिन झड़ जाता है,ऐसा ही तो मानव जीवन है,नव किसलय तभी खिलेंगी,जब पुराने पत्ते झड़ जाते हैं, फिर वियोग पर दुखी किसलिए होना,यह तो अटल सत्य है।।खिज़ा यानि पतझड़ को तो एक न एक दिन आना ही है।।