*खुशी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है भीतर का एहसास* *कोई तो कुटिया में भी खुश है, किसी को महल भी नहीं आते रास* *जब तक जिंदगी के रास्ते समझ आते हैं तब तक जिंदगी का सफर पूरा होने को होता है, शायद विडंबना इसी का नाम है। जिंदगी की इस आपाधापी में कब जीवन पथ अग्निपथ बन जाता है एहसास ही नहीं हो पाता। इसका मुख्य कारण एक नहीं अनेक हैं।हमारा परिवेश, हमारा परिवार, समाज हमारी परवरिश और हमारी प्राथमिकताएं और सबसे महत्वपूर्ण हमसे की जाने वाली अपेक्षाएं।। सामाजिक और पारिवारिक दबाव कई बार नहीं अक्सर हमे प्रतिस्पर्धा के गहरे कुएं में उतार देता है और वो भी बिन किसी रस्सी के।जग को जानने का दावा करते रहते हैं,पर खुद की खुद से कभी मुलाकात ही नहीं करवाते।कभी अंतर्मन के गलियारों में घूमते ही नहीं,सबसे ज़रूरी बात है,पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती,पर हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में विशेष है, जरूरत इस बात की है कि आत्म निरीक्षण कर,आत्ममंथन किया जाए,अपनी रुचि अभिरुचियों से हमे परिचित होना चाहिए, अपनी विशेषता को अगर हम ही पहचान नहीं पाए तो क्या लाभ,हमारे मात पिता भी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका नि...