एकांतवास भी देता है अवसर, करने को विचरण मन के गलियारों में। हम दस्तक ही नहीं देते मन के किवाड़ों पर, भरमाए से रहते हैं माटी के दरो दीवारों में।। उम्र बीत जाती है सारी,खुद की खुद से मुलाकात होने में, बिन लक्ष्य ही चलते रहते हैं मंज़िल की ओर,रहते हैं लगे अनमोल समय को खोने में।। स्नेह प्रेमचंद