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यादों के गलियारों में

तूं ही तूं आती है नज़र सच,यादों के गलियारों में। कहां नहीं है तूं जीजी,सोते जागते हमारे विचारों में।।              स्नेह प्रेमचंद

आता है आनंद मुझे

बेला आई है

अवसर Thought by sneh prem chand

एकांतवास भी देता है अवसर, करने को विचरण मन के गलियारों में। हम दस्तक ही नहीं देते मन के किवाड़ों पर, भरमाए से रहते हैं माटी के दरो दीवारों में।। उम्र बीत जाती है सारी,खुद की खुद से मुलाकात होने में, बिन लक्ष्य ही चलते रहते हैं मंज़िल की ओर,रहते हैं लगे अनमोल समय को खोने में।।        स्नेह प्रेमचंद

हर्फ दर हर्फ

मन के भीतर

आई बेला विचरण करने की, अब मन के गलियारों में। मन के भीतर ही राम मिलेंगे, न मन्दिर,न मस्ज़िद,न गुरुद्वारों में।।         स्नेहप्रेमचंद