*हानि धरा की लाभ गगन का* असमय ही अस्त हो गया आफताब। तेज बरकरार रहेगा लेकिन, हर्फ दर हर्फ भरती गई शौर्य की किताब।। अपूरणीय क्षति,अविश्वसनीय घटना, स्तब्ध वतन घुल गया फिजा में जैसे तेजाब।। सच में हमने खो दिया एक हीरा नायाब।। बार बार नहीं लेते जन्म धरा पर ऐसे सच्चे नायक बेहिसाब। मां,मातृभूमि और मातृभाषा से उऋण नहीं हो सकते हम कभी, सिखा गए वतन को जांबाज।। हानि धरा की,लाभ गगन का, असमय ही अस्त हो गया आफताब। साहस,शौर्य,देश भगति के पर्याय, आज दैहिक रूप से भले ही न हों बीच हमारे,पर जेहन में करेंगे बसेरा बेहिसाब।। सजल हैं नयन,अवरुद्ध है कंठ, कायनात में घुल गया जैसे तेजाब।। पुर्जा पुर्जा सा हिल गया वजूद का,कितनी है पीड़ा,नहीं कोई हिसाब।।