चलो अतीत के झोले से कुछ बेशकीमती लम्हे चुराते हैं। जो भूल गए हैं हमे, उन्हें कुछ भूला सा याद दिलाते हैं।। मित्र के इत्र से महक रहा है आज भी चरित्र मेरा, उस महक से सब को रूबरू कराते हैं।। वो उन्मुक्त हंसी, वो मीठी सी हिदायतें, वो बिन बात के हंसते जाना, अनेक एहसासों से उन्हें जिंदगी का हिस्सा बनाते हैं।। वो कहीं जा ही नहीं सकते जो बसे हैं एहसासों में हमारे, आज भी उनके जिक्र से तरोताजा हुए से जाते हैं।। जिंदगी का परिचय खुशियों से कराने वाली, हर लम्हे को खूबसूरत भावों से भरने वाली, मेरी जिस्मों जान को श्रद्धा पुष्प चढ़ाते हैं।। ताउम्र रहेंगे वो ख्यालों में हमारे,उनसे कुछ नहीं,बहुत कुछ सीखे जाते हैं।। स्नेह प्रेमचंद स्नेह प्रेमचंद