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दे साथ लेखनी((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दे साथ लेखनी, आज तेरे लेखन से एक गुजारिश करेंगे। जननी होती है रूप ईश्वर का, कुछ ऐसे भावों से, सबके हिया के कैनवास को, प्रेम की कूची से भरेंगे।। आज ही के दिन तो पंचतत्व में विलीन हुई थी माँ की काया। फिर आ गयी ये निष्ठुर 5 अगस्त,मन कुछ सोच सोच फिर भर आया।। शोक नहीं, संताप नहीं,  हम माँ को गर्व से हमेशा याद करेंगे। कुछ सीखा है,कुछ और भी सीखेंगे,दुःखियों के संताप हरेंगे।। वृक्ष के पीले पत्तों को, एक दिन तो झड़ जाना है। कुछ नई कोपलों,कुछ नए पत्तों को,समय के साथ तो आना है।  जीवन की इस सच्चाई से , मेरी लेखनी,हम नहीं डरेंगे। आदर भाव से झुक जाता है सिर,माँ की तारीफ हम जग से कहेंगे। यही होगी सच में श्रद्धांजलि मां को,शत शत नमन अपनी माँ को करेंगे। दे लेखनी,आज कुछ साथ मेरा,आज हिया की पाती मिलजुल पढेंगे।। युग आएँगे, युग जाएंगे, पर माँ तुझ को भुला न पाएंगे। आने वाली हर पीढ़ी को,तेरे कर्मो की गाथा सुनाएंगे। कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है,हम उनको तेरे अस्तित्त्व का कैसे यकीन दिलाएंगे। शुक्रिया लेखनी,तूने दिया साथ मेरा,माँ को श्रद्धांजलि दोहराएँगे।। कतरा कतरा बनता हैं सागर, लम्हा ल...