ओ लेखनी सुन ज़रा , कभी नही रुकना, कभी नही थकना,कभी न मानना जीवन मे हार। इतना तो निश्चित है प्रिय, हो रहा दिनोदिन तुझ में परिष्कार, मन के भावों का जीवंत सा कर देती हो चित्रण, सच मे हो तुम एक कुशल सी शिल्पकार।। बस एक सन्देसा देना जग में, प्रेम ही है हर रिश्ते का आधार। शब्दों में भी तू है,चित्रों में भी तू है, तुझ से ही तो बनता है चित्रकार।। बिन शब्दों के मन के भावों को, उकेरने में सक्षम है चित्रकार, लेखक से भी श्रेष्ठ है वो, भावों को चित्र का दे देता है आकार।। माँ सरस्वती की असीम कृपा होती है उनपर, जो कल,साहित्य,संगीत से करते है प्यार , कभी नही रुकना,कभीन्ही थकना, कभी न मानना जीवन मे हार। आलोचनाओं को भी सह लेना सहज भाव से, आलोचना भी खोलती है सफलता का द्वार।।