अपने ही जब देते हैं जख्म Thought by Sneh premchand October 10, 2020 अपने ही जब देते हैं जख्म तब, मरहम कहीं नहीं मिलता। बागबान ही गर उजाडे चमन को, एक भी पुष्प नहीं खिलता।। स्नेह प्रेमचंद Read more
बदल रही ज़िंदगानी April 27, 2020 भर रहे हैं जख्म प्रकृति के हो रहा स्वच्छ निर्मल नदियों का पानी। मैली गंगा शुद्ध हो गई, बदल गयी घाटों की ज़िंदगानी स्नेहप्रेमचंद , Read more