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सच हम कभी भी मोहम्मद रफी जी को भुला नहीं पाएंगे(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

*सुरों का सरताज* कहूं या कहूं *शहंशाह ए तरन्नुम* एक दो नहीं जाने कितनी ही उपाधियों से रफी जी नवाजे जाएंगे *उम्र छोटी पर गायिकी बड़ी* लोग यही समझ बस पाएंगे कोई इतना अच्छा भी गा सकता है अपने कानों को यकीन दिलाएंगे *मखमली आवाज बेताज बादशाह*  को सब छुटने अपने बिठाएंगे कलाकार जग से भले ही चले जाएं पर जेहन से उन्हें कभी निकाल नहीं पाएंगे अपनी तिलस्मी आवाज और सुरों के जादू से पूरे ही ब्रह्मांड को कर दिया संगीतमय,भला कैसे इसे भुला हम पायेंगे *सात सुरों में से एक सुर कम हो गया* ऐसा कहा था नौशाद ने उनके जाने के बाद उनकी कमी कभी पूरी नहीं हम कर पाएंगे ११ स्वरों और ३३ व्यंजनों में नहीं वह क्षमता जो बता सकें कैसा गाते थे रफी जी,उनके गीत उनकी कहानी खुद सुनाएंगे