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Showing posts with the label जरा सोचिए

मांसाहारी जी पाती

माँसाहारी की पाती प्रकृति ने दिए हैं हमें खाने को जाने कितने उपहार। फिर भी क्यों चलाते हो निर्दोष,मूक पशु,पक्षियों पर निर्मम कटार। ज़रा सी गर्म हवा रोटी की लगती है सोचो कैसे निकल जाती है जान। हमे क्यों भून भून कर खाते हो, क्या सच मे हो तुम नेक इन्सान।। आज एक विनती करते हैं तुमसे खुद को हमारी जगह पर रख कर देखो कितना निर्मम लगेगा मानव, थोड़ा अनुमान लगा कर देखो।। आये हैं तो जाना है फिर क्यों पाप का बोझ उठाना है। सात्विक भोजन को अपनाकर ,क्यों जीवन हमारा नही बचाते हो। बेबसी,दर्द,पीड़ा,क्रोध, नाराजगी इन सब भावों की काहे प्लेट सजाते हो।

बहुत कुछ खाते हैं

जब हम किसी जीव को खाते हैं मात्र जीव ही नहीं और भी बहुत कुछ खाते हैं।जीव की बेबसी,उसका दर्द,उसकी बेचैनी,उसकी बददुआ, उसका क्रोध और उसका आक्रोश।जैसे समोसे के साथ चटनी मिलती है ये जीव के साथ कि सौग़ात हैं, इन्हें भी संग कबूल करना होगा।

बड़े दुख की बात है

AAZ KA VICHAR.....bahut dukh ki bat h zindgi  ki sham hone ko aa jati h aur khud ki khud se mulakat hi nhi ho pati,bahut dukh ki bat h ki apney apney hone ka farz ada nhi kerte,bahut dukh....ham khushiyan vhan dundte hein jhan sachhi khushiyan hoti hi nhi,bahut dukh....ham unn rishton ko bhul jate hein jo dil se hmara bhla chahte hein,aur unn ki taraf bhagte hein jo sukh ke sathi to hein,per dukh ke nhi.......h na dukh ki bat,log kre jate hein aur ham kathputli ki terah sune jate hein

पीछे क्यों????

बवाल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कतई ज़रूरी नहीं((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))