अब तो होने ही लगा है पूरा अहसास यूँ ही तो नहीं आया ये जलजला, जाने कितने ही सृष्टि में होंगे आह भरे श्वाश।। जाने कितने ही बेजुबान निर्दोष निरीह प्राणियों पर चली होगी ये निर्मम कटार। जाने कितनी ही मजबूरियां सिसकी, घुटी और तडफी होंगी, शायद बेशुमार।। जाने कितनी छेड़छाड़ की इंसा ने प्रकृति से, देखता तो होगा वो परवरदिगार। जाने कितने ही बचपन चढ़े होंगे शोषण की वेदी पर, कितना ही हुआ होगा उन पर अत्याचार।। जाने कितने ही आँचल जबरन हुए होंगे इस जग में दागदार।। जाने कितने ही बुजुर्गों को घर की बजाय वृद्धाश्रम पर करना पड़ा होगा एतबार।। इन्तहां हो गई होगी हदों की, टूटी होंगी जाने कितनी ही आस। अब तो होने लगा है पूरा अहसास, यूँ ही तो नहीं आया ये जलजला जाने अगणित ही होंगे सृष्टि में आह भरे अहसास।। जाने कितने ही अरमानों की कबरें हुई होंगी तैयार।। जानें कितनी ही बेबसियां हुई होंगी लाचार।। स्नेहप्रेमचन्द