दो पल की इस ज़िन्दगानी में सबको अपना अपना किरदार निभाना है,आज तेरी,कल मेरी है बारी, बंधु सब को जग से जाना है,पर इस सफर में हम ज़िन्दगी के मानचित्र में कर्म की किस कूची से कौन सा रंग और कैसे भरते हैं,इस पर चित दौड़ाना है,क्या दर्द उधारे लिए किसी के,क्या वक़्त पर किसी के काम आये,क्या भौतिक सुखों के आगे भूल गए मानवता को,क्या अपने पराये के भेद बनाये,खुद की खुद से मुलाकात ज़रूर करानी है,जीवन की इस आपाधापी में ढपली प्रेम की ज़रूर बजानी है,आप क्या सोचते हैं