थाली तो बड़े जोर जोर से, हम बेटा होने पर बजाते हैं। पर जब जीवन की सांझ ढले, अपनी तनहाइयों के कोलाहल, हौले हौले बेटियों को ही सुनाते हैं।। बेटों से तो मात पिता मन की भी, नहीं सही से कह पाते हैं।। शायद विरोधाभास का इससे बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता।। अधिकार तो चाहिए, सबसे पहले, पर जिम्मेदारियां लेने से क्यों कतराते हैं। विडंबना का शायद इससे बेहतर कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता।। हमें क्या मिला,हमें क्या नहीं मिला, इसी उधेड़बुन को जेहन में, अंकित किए जाते हैं। हमने क्या दिया, हम क्या दे सकते थे,इस सोच को भी जेहन में लाने से भी कतराते हैं।। थाली तो बड़े जोर-जोर से, बेटा होने पर बजाते हैं। पर जब जीवन की सांझ ढले, तन्हाइयों के कोलाहल, बेटियों के कान में ही, हौले हौले सुनाते हैं।। जिंदगी तो एक गूंज है, जो देते हैं,उसे ही किसी न किसी रूप में हम वापस पाते हैं।। छोटी सी बात,पर अर्थ बड़ा, क्यों इस सत्य को समझ नहीं पाते हैं। बहुत संभाल कर रखी जाती है, वसीयत मात-पिता की, पर अक्सर दवाइयों क...