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कहां जाती होंगी वे औरतें(( नारी मन की व्यथा पर विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

दुनिया से जाने वाले

दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ, किस पगडंडी से किस राह को चुन लेते हैं वो,नही छोड़ते कोई निशाँ, माटी मिल जाती है माटी में,है ये जीवन की सच्चाई,जन्म से  मौत का सफर ही तो है जीवन,छोटी सी बात बड़ों बड़ों को समझ न आयी,सब जानते समझते हुए भी मोह माया के बंधन पड़ जाते है भारी, वो अक्सर याद आ ही जाते हैं,थी जिन्होंने हमारी ज़िंदगी सँवारी

दुनिया से जाने वाले

कभी कभी

नमन

जाने कहां गए

परिंदे thought by snehpremchand

कल्पनाओं के परिंदे जाने किस किस जेहन की मुंडेर पर बैठते हैं।कहीं से कुछ कहीं से कुछ विचारों का चुग्गा चुन लेते हैं कभी तो इस चुग्गे को ज़बत कर लेते हैं और कभी इसे फिजा में बिखेर देते हैं,इन्हें अल्फाजों का परिधान पहना दो तो लेखनका जन्म हो जाता है।।       Snehpremchand