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o लेखनी

ओ लेखनी! जाने कितने अहसासों को अभिव्यक्ति का तुम यकायक पहना देती हो परिधान, निज अनुभवों का छौंक लगा कर,लेखन के मधुर से तैयार कर देती हो पकवान, जिसने पकड़ ली राह साहित्य की, सच मे ही होता है वो धनवान, सब जान कर बहुत कुछ कह देती हो, किसी भी विषय से नही हो अनजान।। किसी भी लेखक के लिए, लेखनी ही होती है भगवान, जानते नही जो तेरी कीमत, वो अभागे है कितने नादान, सच मे ही तुम तो हो, अभिव्यक्ति का प्यारा भगवान।।