कोई अहसास ही नहीं ऐसा,जिसमे तूं न हो, कोई ख्वाब ही नहीं ऐसा,जिसमे तूं न हो, कोई विचार ही नहीं ऐसा,जिसमे तूं न हो, कोई मंजर ही नहीं ऐसा,जिसमे तूं न हो, दूर हो कर भी,बहुत पास है तूं, सच में मेरी लाडो,बहुत खास है तूं, तूं तो बसी है जेहन में ऐसे, जैसे एक सांस आती है, एक सांस जाती है।। कोई कांटा कभी न चुभे तुझे, नस नस मेरी यही गुनगुनाती है।। स्नेह प्रेमचंद